द्वितीय विश्व युद्ध 1945 ईसवी में समाप्त हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात ही दो महा शक्तियों का उदय हुआ। इन दो महाशक्तियों के उदय के कारण विश्व दो गुटों मे बंट गया। एक ओर साम्यवादी अर्थव्यवस्था और दूसरी ओर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था अमेरिका। इन दोनों महा शक्तियों के कारण शीत युद्ध का उदय हुआ।
शीत युद्ध
शीत युद्ध से हमारा अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें वास्तविक युद्ध ना होते हुए भी युद्ध के समान परिस्थितियों बनाए रखना है यह एक ऐसा युद्ध है जिस कारण क्षेत्र मानव का मस्तिष्क होता है इस अवस्था में दो परस्पर विरोधी पक्ष मौजूद होते हैं जो युद्ध के लिए तैयार रहते हुए भी किसी कारणवश प्रत्यक्ष युद्ध या तो आरंभ नहीं कर पाते या ऐसा करने से जानबूझकर बचते हैं इसमें रणक्षेत्र का वास्तविक युद्ध नहीं होता परंतु विपक्षी राज्यों की सभी राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक संबंधों में शत्रुता भरे तनाव की स्थिति रहती है। इस युद्ध में दोनों गुट एक दूसरे को आर्थिक राजनीतिक सामाजिक रूप से कमजोर बनाने का प्रयास करते हैं ताकि उस देश की जनता में तनावपूर्ण स्थिति बनी रहे।
पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने कहा था”शीत युद्ध प्राचीन शक्ति संतुलन की अवधारणा का नवीन रूप है यह दो विचारधाराओं का संघर्ष ना होकर दो भीमकाय शक्तियों का पारस्परिक संघर्ष है “
• दोनों राष्ट्र विश्व में आंतक व भय इस स्थिति को बनाए रखना चाहते हैं।
• शीत युद्ध की प्रकृति कूटनीतिक युद्ध के समान है जो अत्यंत उग्र होने पर सशस्त्र युद्ध को जन्म दे सकती है शीत युद्ध से ग्रस्त दोनों पक्ष आपस से शीट युद्ध कालीन कूटनीतिक सुगंध बनाए रखते हुए भी शत्रु भाव रखते हैं।
शीत युद्ध एक वाकयुद्ध है। इसमें दोनों पक्ष एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं ताकि छोटे-छोटे राष्ट्र उस गुट में मिल सके।
शीत युद्ध के साधन
• शीत युद्ध का प्रथम प्रमुख साधन प्रचार करना था प्रचार करने से हमारा भी प्राय अपनी नीतियों कार्यक्रमों के पक्ष में व शत्रु राष्ट्र के द्वारा निर्मित नीतियों और कार्यक्रमों के विरोध में अपनी जनता व अन्य देशों की जनता के मध्य चेतना पैदा करना।
• शीत युद्ध का दूसरा प्रमुख साधन आर्थिक सहायता था दोनों पक्षों के द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर व पिछड़े हुए राष्ट्रों की पहचान करके उन्हें विभिन्न माध्यमों से आर्थिक सहायता प्रदान करते है आर्थिक सहायता देने का एकमात्र उद्देश्य कमजोर राष्ट्रों को अपने पीछे निकालना होता है।
• शीत युद्ध का तीसरा सबसे प्रभावशाली और सशक्त साधन कूटनीति था कूटनीति साधनों से लड़ा जाने वाला युद्ध था शीत युद्ध के दौरान दोनों महा शक्तियों ने अपनी अपनी कूटनीतिक चालों के माध्यम से एक दूसरे को कमजोर करने का प्रयास किया था।
2) बोल्शेविक क्रांति_शीत युद्ध के आरंभ का दूसरा मुख्य कारण बोल्शेविक क्रांति को माना जाता है 1917 ईस्वी में सभी संघ में लेनिन के नेतृत्व में सर्वहारा वर्ग ने बोल्शेविक क्रांति की थी उन्होंने साम्यवादी क्रांति का विरोध करना आरंभ कर दिया था। 1924 ईसवी में ब्रिटेन ने और 1933 में अमेरिका के द्वारा इसे अपनी मान्यता दी गई जिस कारण सोवियत संघ को बारी आघात पहुंचा क्योंकि अमेरिका सोवियत संघ की विचारधारा का विरोध कर साम्यवादी देशों की जनता को साम्यवादी अर्थव्यवस्था के विरोध के लिए उकसा रही थी जिस कारण दोनों गुटों में आर्थिक राजनीतिक रूप से तनाव बढ़ने लगा जिसका शीत युद्ध आरंभ हुआ।
3) अमेरिका द्वारा अणु बंब का प्रयोग_द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब जर्मनी और इटली द्वारा मित्र सेनाओं के आगे आत्मसमर्पण कर दिया गया था तो उसमें जापान बड़ी तेजी से एशिया के देशों को रौंदतादता हुआ आगे बढ़ रहा था। इसके कारण ब्रिटेन अमेरिका की चिंताएं बढ़ने लगी थी। अमेरिका ने सोचा अगर जापान इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो अमेरिका की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था विकसित नहीं हो पाएगी और अमेरिका का विश्व में दबाव कम हो जाएगा। इसलिए जापान के विकास को रोकना आवश्यक है और अमेरिका ने जापान के दो शहरों पर अनु बम गिराए जिस कारण सोवियत संघ ने इसका विरोध किया क्योंकि अमेरिका ने सोवियत संघ की बिना सलाह से अणु बम गिराए थे जिस कारण दोनों गुटों में तनाव बढ़ने लगा जिसका शीत युद्ध का जन्म हुआ हुआ।
4) बर्लिन की नाकेबंदी_जून 1948 में सोवियत संघ के द्वारा लंदन प्रोटोकॉल की अवहेलना करते हुए बर्लिन की पूर्ण नाकेबंदी कर दी। पश्चिमी देशों ने सोवियत संघ की इस कार्यवाही को शांति के लिए घातक बताते हुए यह मामला संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में उठाने का निर्णय किया था शोभित सिंह की इस कार्यवाही से दोनों पक्षों में शीत युद्ध तीव्र हो गया।
शीत युद्ध
शीत युद्ध से हमारा अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें वास्तविक युद्ध ना होते हुए भी युद्ध के समान परिस्थितियों बनाए रखना है यह एक ऐसा युद्ध है जिस कारण क्षेत्र मानव का मस्तिष्क होता है इस अवस्था में दो परस्पर विरोधी पक्ष मौजूद होते हैं जो युद्ध के लिए तैयार रहते हुए भी किसी कारणवश प्रत्यक्ष युद्ध या तो आरंभ नहीं कर पाते या ऐसा करने से जानबूझकर बचते हैं इसमें रणक्षेत्र का वास्तविक युद्ध नहीं होता परंतु विपक्षी राज्यों की सभी राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक संबंधों में शत्रुता भरे तनाव की स्थिति रहती है। इस युद्ध में दोनों गुट एक दूसरे को आर्थिक राजनीतिक सामाजिक रूप से कमजोर बनाने का प्रयास करते हैं ताकि उस देश की जनता में तनावपूर्ण स्थिति बनी रहे।
पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने कहा था”शीत युद्ध प्राचीन शक्ति संतुलन की अवधारणा का नवीन रूप है यह दो विचारधाराओं का संघर्ष ना होकर दो भीमकाय शक्तियों का पारस्परिक संघर्ष है “
शीत युद्ध के प्रकृति
• दोनों पक्ष विश्व के निर्बल राष्ट्रों को अपने पक्ष में करने के लिए आर्थिक सहायता देते हैं ताकि उन्हें अपने अपने गुट में शामिल किया जा सके।• दोनों राष्ट्र विश्व में आंतक व भय इस स्थिति को बनाए रखना चाहते हैं।
• शीत युद्ध की प्रकृति कूटनीतिक युद्ध के समान है जो अत्यंत उग्र होने पर सशस्त्र युद्ध को जन्म दे सकती है शीत युद्ध से ग्रस्त दोनों पक्ष आपस से शीट युद्ध कालीन कूटनीतिक सुगंध बनाए रखते हुए भी शत्रु भाव रखते हैं।
शीत युद्ध एक वाकयुद्ध है। इसमें दोनों पक्ष एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं ताकि छोटे-छोटे राष्ट्र उस गुट में मिल सके।
शीत युद्ध के साधन
• शीत युद्ध का प्रथम प्रमुख साधन प्रचार करना था प्रचार करने से हमारा भी प्राय अपनी नीतियों कार्यक्रमों के पक्ष में व शत्रु राष्ट्र के द्वारा निर्मित नीतियों और कार्यक्रमों के विरोध में अपनी जनता व अन्य देशों की जनता के मध्य चेतना पैदा करना।
• शीत युद्ध का दूसरा प्रमुख साधन आर्थिक सहायता था दोनों पक्षों के द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर व पिछड़े हुए राष्ट्रों की पहचान करके उन्हें विभिन्न माध्यमों से आर्थिक सहायता प्रदान करते है आर्थिक सहायता देने का एकमात्र उद्देश्य कमजोर राष्ट्रों को अपने पीछे निकालना होता है।
• शीत युद्ध का तीसरा सबसे प्रभावशाली और सशक्त साधन कूटनीति था कूटनीति साधनों से लड़ा जाने वाला युद्ध था शीत युद्ध के दौरान दोनों महा शक्तियों ने अपनी अपनी कूटनीतिक चालों के माध्यम से एक दूसरे को कमजोर करने का प्रयास किया था।
शीत युद्ध के कारण
1) वैचारिक मतभेद-शीत युद्ध के आरंभ होने का मुख्य कारण दोनों देशों के मध्य पाया जाने वाला वैचारिक अंतर था द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात दोनों विचारधाराएं बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुई थी वह विचारधारा साम्यवादी और पूंजीवादी विचारधारा थी दोनों गुट अपनी-अपनी विचारधारा को लोकप्रिय बनाकर ज्यादा से ज्यादा राष्ट्रों को अपने पीछे लगाना चाहते थे जिस कारण दोनों में मतभेद हुए और शीत युद्ध का आरंभ हुआ।2) बोल्शेविक क्रांति_शीत युद्ध के आरंभ का दूसरा मुख्य कारण बोल्शेविक क्रांति को माना जाता है 1917 ईस्वी में सभी संघ में लेनिन के नेतृत्व में सर्वहारा वर्ग ने बोल्शेविक क्रांति की थी उन्होंने साम्यवादी क्रांति का विरोध करना आरंभ कर दिया था। 1924 ईसवी में ब्रिटेन ने और 1933 में अमेरिका के द्वारा इसे अपनी मान्यता दी गई जिस कारण सोवियत संघ को बारी आघात पहुंचा क्योंकि अमेरिका सोवियत संघ की विचारधारा का विरोध कर साम्यवादी देशों की जनता को साम्यवादी अर्थव्यवस्था के विरोध के लिए उकसा रही थी जिस कारण दोनों गुटों में आर्थिक राजनीतिक रूप से तनाव बढ़ने लगा जिसका शीत युद्ध आरंभ हुआ।
3) अमेरिका द्वारा अणु बंब का प्रयोग_द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब जर्मनी और इटली द्वारा मित्र सेनाओं के आगे आत्मसमर्पण कर दिया गया था तो उसमें जापान बड़ी तेजी से एशिया के देशों को रौंदतादता हुआ आगे बढ़ रहा था। इसके कारण ब्रिटेन अमेरिका की चिंताएं बढ़ने लगी थी। अमेरिका ने सोचा अगर जापान इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो अमेरिका की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था विकसित नहीं हो पाएगी और अमेरिका का विश्व में दबाव कम हो जाएगा। इसलिए जापान के विकास को रोकना आवश्यक है और अमेरिका ने जापान के दो शहरों पर अनु बम गिराए जिस कारण सोवियत संघ ने इसका विरोध किया क्योंकि अमेरिका ने सोवियत संघ की बिना सलाह से अणु बम गिराए थे जिस कारण दोनों गुटों में तनाव बढ़ने लगा जिसका शीत युद्ध का जन्म हुआ हुआ।
4) बर्लिन की नाकेबंदी_जून 1948 में सोवियत संघ के द्वारा लंदन प्रोटोकॉल की अवहेलना करते हुए बर्लिन की पूर्ण नाकेबंदी कर दी। पश्चिमी देशों ने सोवियत संघ की इस कार्यवाही को शांति के लिए घातक बताते हुए यह मामला संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में उठाने का निर्णय किया था शोभित सिंह की इस कार्यवाही से दोनों पक्षों में शीत युद्ध तीव्र हो गया।

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