उसके साथ पहली मुलाकात से पहले मेरी जिंदगी बहुत हसीन थी। न जिंदगी में कोई गम था और न ही किसी चीज को
पाने की चाहत थी। उससे‌ मुलाकात से पहले जिंदगी यूं ही बीता करती थी। जैसे मुसाफिरो की जिंदगी बीत जाती है एक अनजाने सफर में! न ही धरती पर कुछ पाने की चाहत और ना ही आकाश में कुछ खोजने की चाहत थी। मेरी जिंदगी कुछ कामों तक ही सीमित रह चुकी थी। दिन में जागना, रात को
सोना ही जिंदगी का पहलू बन चुका था। यारों के साथ मस्ती करना और पढाई से दूर भागना। पढ़ाई के साथ मेरा वैसा ही रिश्ता था जैसा धरती और आसमान का! मुझे सभी लोग एक ही बात बोला करते थे कि तूं पढता क्यों नहीं? अगर तूं पढेगा नहीं। 


तो जिंदगी में क्या करेगा? इस दुनिया में कोई साथ
नहीं देगा तेरा? पर मैं उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता था। क्योंकि मां मुझे बोला करती थी कि कोई तेरा साथ दे या ना दे मैं हमेशा परछाईं बनकर तेरा साथ दूंगी। खुशी में तो पूरी दुनिया तुझे समेट कर रखेंगी पर मैं तुझे तब भी समेट कर रखूंगी जब तू गम में बिखर रहा होगा। तेरे हर दुख को पहले मुझे बिखेरना होगा। मुझे लगता था कि दुख भगवान जी ने बनाया है और दुख भगवान को कैसे बिखेर सकता है। जब भगवान ने मां को बनाया होगा तो वो भी रोया होगा कि इसे प्राण दे सकता हूं प्राण वापस लेने का गुनाह कैसे कर सकता हूं। मां हमारे हर दुख को पी लेती है शायद इसी वजह से हमारी पहली मुलाकात पहली सांस पहला शब्द पहली धड़कन मां है मां शब्द जब पहली बार जीभ‌ पर आया होगा तो जीवन ने जीवन रूपी अमृत पिया होगा।

नोट - मैं कोई लेखक नहीं हूं बस लिखना पसंद है और कोशिश कर रहा हूं ताकि एक अच्छा लेखक बन सकूं। और ये मेरा एक छोटा सा प्रयास है आप मुझे बताइए कहां सुधार की गुंजाइश है ताकि मैं अपनी लेखनी में सुधार कर सकूं।
धन्यवाद 
अभिषेक 

Axact

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