मनुष्य भी बड़ा विचित्र प्राणी है। अपनों से नीचे के स्तर के लोगों को वह लज्जा की दृष्टि से देखता है। उनका उपहास उड़ाता है। बार-बार कहता है। तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता। तुम भविष्य में कुछ नहीं कर पाओगे। जब मनुष्य के पास धन संपत्ति मान होता है। तो वह दूसरों का आदर नहीं करता है। परंतु वह एक बात भूल जाता है। उससे भी शक्तिशाली एक चीज है। और वह है समय । काल अपना चक्र बदलेगा यह कोई नहीं जानता। अहंकार, स्वयं से प्रेम करना तो ठीक है।



 सफलता अभिमान जगाती है। यहां तक तो ठीक है। परंतु जब अहंकार जन्म लेता है। तब रुकना चाहिए। सोचना चाहिए। परिश्रम हमारे मन में गर्व को जन्म देता है। और सफलता अभिमान जगाती है। यहां तक तो ठीक है। समय का करवट कब बदलेगा यह किसी के बस में नहीं है। इसलिए जीवन में कभी भी किसी का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। परंतु जब यह भावना अहंकार बन जाती है। तब वह समस्या बन जाती है। सबसे बड़ा अंत तो अहंकारी का ही होता है। परंतु मनुुष्य के लिए पहल तो यही है। पहचाना कैसे जाए। 

अहंकार जग गया। और उसका तबन अनावश्यक हैं। इसका उत्तर मैं नहीं आपका मन देगा। जब तक आप स्वयं से प्रसन्न है। और आप सबसे ऊंचा उठने का प्रयास कर रहे हैं। तब तक ठीक है। परंतु जब आपके अंदर दूसरों को नीचा दिखाने की भावना जागृत हो जाती है। या जब यह प्रश्नन आपके अंदर आ जाता है। तो आप सावधान हो जाइए जो वास्तव में आपको हीन कर रहा है। किसी की निंदा करना भी शास्त्रों में पाप कहा गया है। एक तरफ अगर आप पुण्य करते हैं और दूसरी तरफ आप दूसरों की निंदा करते हैं तो आपका पुण्य भी पाप गिना जाएगा। दूसरों की निंदा करना छोड़ दो। क्यों किसी की निंदा करके अधर्म कर रहे हो

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