केंद्र सरकार ने 34 सालों बाद शिक्षा नीति में बड़ा बदलाव किया है। 1968 और 1986 के बाद यह तीसरी शिक्षा नीति है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह बदला बहुत ही जरूरी था। क्योंकि वर्तमान की शिक्षा नीति एक भेड़ चाल बनी हुई है। मानव संसाधन मंत्रालय का नाम शिक्षा मंत्रालय किया गया है। नई शिक्षा नीति को जमीन पर लाने के लिए बहुत से चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
नई शिक्षा नीति के समक्ष चुनौतियां
1.2017_18 में भारत सरकार ने जीडीपी का महज 2.7 प्रतिशत किस्सा ही शिक्षा पर खर्च किया, नई शिक्षा नीति के तहत 6 प्रतिशत लक्ष्य हासिल करना एक बहुत बड़ी चुनौती है।
2.यूजीसी,एआईसीटीई,एनसीटीई की जगह एक ही नियामक के होने से शिक्षा के केंद्रीकरण की आशंका है। एक ही नियामक के कारण नई शिक्षा को विकास नहीं मिल सकता है।
3.नई शिक्षा नीति में एक और समस्या निकल कर सामने आएगी नई शिक्षा नीति का माध्यम मातृभाषा होने से अलग-अलग राज्यों में कई समस्याएं उत्पन्न होगी। क्योंकि प्रत्येक राज्य में दूसरे राज्यों के व्यक्ति भी रहते हैं। और उन्हें उस राज्य की भाषा नहीं आती होगी। यह तो स्वाभाविक ही है इसलिए उन बच्चों को उस मातृभाषा में पढ़ना अत्यधिक कठिन होगा।
4.शोध को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन को फास्ट ट्रैक बेसिस पर स्थापित करने की आवश्यकता होगी।
5.बच्चों और उनके विवाह को को नई शिक्षा नीति के साथ जोड़ना भी एक बहुत बड़ी समस्या है। क्योंकि जब भी कोई नीति धरातल पर लाई जाती है। तो उसे अपनाने में काफी समय लगता है।
6.राष्ट्रीय शिक्षा नीति को जमीन पर उतारने के लिए प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित सरकारों को मिलकर काम करना होगा। और विपक्ष को भी नई शिक्षा नीति का समर्थन करना चाहिए।
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